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आँचल माँ का

प्रतियोगिता के लिए

शीर्षक - आँचल माँ का 

बहुत  सुख की नींद आती मुझे तेरे आँचल में माँ!
जहाँ की सभी ख़ुशियाँ, सिमटी तेरे आँचल में माँ।

सिर को ढके आँचल से लगती सौम्यमूर्ति सी।
संस्कारों की जागृत प्रतिमूर्ति सी लगती माँ।

घने दरख़्त की शीतल छाँव से भी शीतल।
आँचल की हवा देकर मन प्रमुदित करती  माँ।

आँचल में तेरे छिपकर स्वर्ग का सुख मिले।
सुरभित चमन की खुशबू आँचल से बिखेरती माँ।

आता मैं थकाहारा परेशान  जब कहीं बाहर से,
ममता  भरे आँचल  से मेरा पसीना पोछती माँ।

लग गई चोट मुझे और मैं कराह उठा दर्द से।
अपने आँचल से मेरे घाव का रक्त पोछती माँ।

आँखो  में पड़ जाता  कभी धूल का  कोई कण।
आँचल को भाप से गर्म कर  आंखों को सेंकती माँ।।

मंदिर में खड़ी होकर माँगती मेरी सलामती की दुआ।
हाथों में आँचल को दबाकर कुछ बुदबुदाती माँ।

आँचल के साये में  लिपट मिलती ज़माने की खुशियाँ।
मेरी खुशियों पर अपनी सभी खुशियां वारती माँ।

प्रेम का सोता बहाती हर हाल में वो मुस्कराती।
स्नेहयुक्त आँचल लिए  पावन  निर्झरिणी  माँ।

स्नेहलता पाण्डेय \\'स्नेह\\'
नई दिल्ली


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5 Comments

रतन कुमार

25-Sep-2021 11:06 AM

वाह सुन्दर

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Renu Singh"Radhe "

25-Sep-2021 07:15 AM

Nice

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Swati Charan Pahari

25-Sep-2021 01:46 AM

बेहतरीन

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